आत्म ज्ञान है साधको ! यह तीर्थ है वह वह तीर्थ है ऐसा जानकार मूद लोग घूमने फिरते है क्योंकि वे आत्मतीर्थ की नहीं जानते।
आत्मतीर्थ सबके पास है परम पूज्य गुरु माँ तपेश्वरी नंदा जी उस आत्मतीर्थ में जाने की युक्ति बताते हैं। जो उसके बताये हुए मार्ग के अनुसार जाता है उस शिव तत्व का पूजन करता है! वह धन्य हो जाता है ऐसे आत्मवेता महापुरुष यहा विवास करते हैं उस जगह में तीर्थत्व आ जाता है। जागृत तीर्थ बना जाता है लोग शांति और तृप्ति का अनुभव करते हैं।

बद्रीनाथ, केदारनाथ, रामेश्वर, गंगोत्री आदि जो तीर्थ है वहाँ पर आत्मतीर्थ मे गोता लगाने वाले महापुरुष वास करके उन तीर्थों को तीर्थत्व प्रदान करते हैं संसे तीथो को स्थावर तीर्थ कहते है ऐसे तीर्थ तो जब हम वहां पहुंचते है तब पुण्य प्रदान करते हैं लेकिन हमे तो खोजना है उस तीर्थ को उस पुण्य को जो सबसे श्रेष्ठ है वह है जंगभ तीर्थ अर्थात् सत्यमार्गी, जिनके सानिध्य से अनृःकरण से ही तीर्थत्व प्रदान होता है। मनुष्यों का भवरोग मिट जाता है।इस आत्म तीर्थ को न जानने के कारण ही अज्ञानी जीव पुरुषार्थ करना चाहिए इससे हमारे मुद्रा-विज्ञान,लामा-फेरा-दीक्षा , ध्यान व दीक्षाएँ इत्यादि सहायक है ये सब करने के लिए शरिर, प्राण ओर मन की स्थिरता आवश्यक है।

प्राण के स्थिर होने, श्वास क्रिया करने से शरीर की स्थिरता होती है और मन भी स्थिर होने लगता है अगर सत्यामार्गी सद्गुरू के मार्गदर्शन में लगातार अभ्यास किया जाये तो छः महीने में ज्ञान, चेतना जागृति होने लगती है और तीन साल तक तत्परतापूर्वक अभ्यास किया जायती वी योगी योगेश्वर हो जाता है। दूसरी के मन की जान लेना, भविष्य में होने वाली घटनाओं का पहले से पता लग जाना आकाश में उडना श्रणभर में दूर से आ जाना दूरदर्शन और दूरक्षवन की सिद्धियां भी उस आभासी को होने लगती है! इतना ही नही प्राणियों को वश में करने की शक्ति भी उस योगी के भीतर आ जाती है दूसरे के मन की बात जानने की मानसिक शक्ति भी उस योगी को प्राप्त हो जाती है और इस समग्र संसार में अपने आत्मा का अनुभव करने वाली दिव्य बुद्धि भी उसे प्राप्त होती है। उसकी सेवा करने वाले अज्ञानी भी मुक्त हो जाती है। उसके सौ कुल तर जाते हैं।
ऐसा योगी खुद तो संसार से पार हो जाता है उसके सम्पर्क मे आने वाले को भी तार देता है उनका कल्याण कर देता है।

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